
कोरोना की दूसरी लहर को थामने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर तेज बहस के बीच आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे किसी भी कदम से इकोनॉमी को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाएगा। ऐसे में पिछले वर्ष की तरह ही जीडीपी विकास दर धड़ाम हो सकती है।
कोरोना की दूसरी लहर को थामने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन को लेकर तेज बहस के बीच आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे किसी भी कदम से इकोनॉमी को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाएगा। ऐसे में पिछले वर्ष की तरह ही जीडीपी विकास दर धड़ाम हो सकती है। सरकारी अनुमान के मुताबिक देश के 700 से अधिक जिलों में से लगभग 170 जिलों में ही संक्रमण दर 15 फीसद से अधिक है । वहीं, 17 राज्यों में कोरोना के सक्रिय मामले 50,000 से कम हैं। उद्योग संगठन पीएचडी चेंबर के प्रेसिडेंट संजय अग्रवाल के अनुसार देशव्यापी लॉकडाउन की सूरत में पिछले वित्त वर्ष की तरह चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी 23 फीसद से अधिक की गिरावट हो सकती है।
मौजूदा क्षेत्रीय लॉकडाउन के दौरान कई सेक्टरों में मैन्युफैक्चरिंग जारी है और दिहाड़ी मजदूरों का काम चल रहा है। पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति में वे वापस सड़क पर आ जाएंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लगने के कारण ही इस वर्ष अप्रैल का मैन्यूफैक्चरिंग सूचकांक पिछले महीने की तरह रहा है। इसी सप्ताह बुधवार को आरबीआइ के गवर्नर ने कहा कि स्थानीय लॉकडाउन के चलते मांग में नरमी का रुख रहेगा, लेकिन यह नरमी पिछले वर्ष से कम होगी।
देश के सबसे बड़े कर्जदाता एसबीआइ के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार एसके घोष के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के संक्रमण और अलग-अलग होने वाले लॉकडाउन से अब तक दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। फिर भी, अच्छी बात यह है लॉकडाउन और प्रतिबंध स्थानीय स्तर पर ही सिमटे हैं, जिससे रोजगार पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
उद्योग संगठन सीआइआइ के प्रमुख उदय कोटक ने भले ही राष्ट्रीय लॉकडाउन की वकालत की हो, लेकिन संगठन की मुख्य अर्थशास्त्री बिदिशा गांगुली का मानना है कि इस बार स्थिति अलग है। राज्य अपने-अपने स्तर पर कुछ न कुछ प्रतिबंध लगा रहे हैं और यही उचित है। देशव्यापी लॉकडाउन से सप्लाई चेन प्रभावित होती है जिससे निर्यात प्रभावित होगा। अभी वैश्विक मांग अच्छी होने से निर्यात में बढ़ोतरी का रुख जारी है।