एक सत्संगी था। उसका भगवान पर बहुत विश्वास था। वो बहुत साधन भजन करता था, सत्संग में जाता था, सेवा करता था। उस पर गुरुजी की इतनी कृपा थी कि उसका साधना पर बैठते ही ध्यान लग जाता था।

एक दिन उसके घर तीन डाकू आ गए और उसके घर का काफी सामान लूट लिया और जब जाने लगे तो सोचा कि मार देना चाहिए नही तो ये सबको हमारे बारे में बता देगा।
ये सुनकर वो सत्संगी घबड़ा गया और बोला- तुम मेरे घर का सारा सामान, नकद, जेवर सबकुछ ले जाओ लेकिन मुझे मत मारो।
उन लुटेरों ने उसकी एक न सुनी और बन्दूक उसके सर पर रख दी।
सत्संगी बहुत रोया, गिड़गिड़ाया कि मुझे मत मारो लेकिन लुटेरे नहीं मान रहे थे।तभी सत्संगी ने उनसे कहा कि मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो।
लुटेरों ने कहा ठीक है।
सत्संगी फ़ौरन कुछ देर के लिए ध्यान पर बैठ गया।
उसने अपने गुरु को याद किया ऒर थोड़ी ही देर में गुरुजी ने उसे दर्शन दिए और दिखाया कि पिछले तीन जन्मों में तुमने इन लुटेरों को एक एक करके मारा था।
आज वो तीनों एक साथ तुम्हें मारने आये हैं और मैं चाहता हूं कि तुम तीनों जन्मों का भुगतान इसी जन्म में कर दो।
ये सुनकर सत्संगी उठ खड़ा हुआ और लुटेरे की बन्दूक अपने सर पर रख के हस्ते हुए बोला कि अब मुझे मार दो। अब मुझे मरने की कोई परवाह नहीं है। ये सुनकर लुटेरे हैरान हो गए और सोचा कि अभी तो ये रो रहा था कि मुझे मत मारो और अब इसे 20 मिनट में क्या हो गया। उन्होने उस सत्संगी से पूछा कि आखिर इतनी सी देर में ऐसा क्या हुआ कि तुम खुशी से मरना चाह रहे हो ??
उस सत्संगी ने सारी बात लुटेरों को बता दी। सारी बात सुनकर लुटेरों ने अपने हथियार सत्संगी के पैरों में डाल दिए और हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि हम तुम्हें नही मारेंगे बस इतना बता दो कि तुम्हारे गुरु कौन हैं| सत्संगी ने अपने गुरुजी के बारे में बता दिया। उसके बाद वो लोग भी सब कुछ छोड़कर सत्संगी बन गए।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि वह गुरु हर पल हमारी रक्षा करता है दुख भी देता है तो हमारे भले के लिए इसलिए हर पल उस गुरु का शुक्र करना चाहिए फिर चाहे वो परम पिता जिस हाल में भी रखे।
जय गुरु